मानवता कभी हंसी-सी दिखती है
कभी यह मुस्कान-सी दिखती है
चेहरे के नूर में दिखती है
अहंकार से पार दिखती है
इसका जिक्र खुद एक कलम लिखती है
क्योंकि यह ना बाजार में और
ना ही इस जहां में बिकती है
यह एक हंसी-सी और मुस्कान-सी दिखती है है

#yachiwriting